लाल किले को गोद देने के फायदे और नुकसान

Red Fort Delhi

Red Fort Delhi Source: Vijay Jayara

भारतीय मीडिया में छपीं खबरों के मुताबिक भारत सरकार ने दिल्ली के लाल किले को डालमिया समूह को गोद देने का फैसला किया है. बहुत से लोग इस कदम का विरोध कर रहे हैं. लेखिका और पत्रकार आलोकपर्णा दास बता रही हैं कि इस कदम के क्या फायदे और नुकसान हो सकते हैं.


आलोकपर्णा दास इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर एडिटर हैं. उन्होंने ऐतिहासिक इमारतों पर काफी अध्ययन किया है. उन्होंने भारत के प्राचीन मंदिरों एक किताब लिखी है. दिल्ली की ऐतिहासिक इमारतों पर उनके दर्जनों लेख और रिपोर्ताज विभिन्न अखबारों और पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं.

आलोकपर्णा दास इस बात को गलत नहीं मानतीं कि एक ऐतिहासिक इमारत को किसी निजी कंपनी को गोद दे दिया जाए लेकिन उनका कहना है कि इस पूरी कवायद का मकसद इमारत की देख-रेख होना चाहिए. वह कहती हैं, "अभी हमें पता नहीं है कि कंपनी की योजना क्या है. इमारत की देख-रेख कैसे की जाएगी. कंजर्वेशन कैसे होगी. उसका बजट क्या है. अभी ये जानकारियां सामने नहीं आई हैं. इसलिए इस कदम खारिज भी नहीं किया जा सकता."

लेकिन दास मानती हैं कि सिर्फ निजीकरण समस्याओं का हल नहीं है और इमारतों की साज-संभाल के लिए एक अलग योजना की जरूरत है जिसमें ऑर्कियलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की भूमिका होनी चाहिए. वह कहती हैं, "एएसआई की हालत खराब है. वहां भर्तियां नहीं हो रही हैं. फंडिंग नहीं है. अच्छा होता कि सरकार उस विभाग की हालत सुधारती ताकि सारी ऐतिहासिक इमारतों की हालत सुधरती. सिर्फ एक लाल किला निजी कंपनी को दे देने से दिल्ली की बाकी डेढ़ हजार इमारतों का भला कैसे होगा?"

सुनिए, यह पूरी बातचीत.

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