जब स्टूडेंट्स कहें कि उन्हें डॉक्टर, इंजिनियर, शिक्षक इत्यादि बनना है तो कोई नहीं चौंकता. पर शायद ही कोई अपने माता-पिता से कहे कि उसे ट्रैवलर यानी यायावर बनना है. आज भी ट्रैवलर को एक पेशे के रूप में नहीं देखा जाता है.
लेकिन कोई भी ट्रैवल कर के, देश-विदेश घूम कर अपना करियर बना सकता है. ये करियर सिर्फ पैसे कमाने के लिए नहीं है बल्कि एक सोच है, दुनिया देखनी की, आत्म निर्भर होने की, नए लोगों से मिलने और उन्हें जानने की.
मिलिए डॉ. कायनात काजी से. बीते तीन साल में इस महिला ने एक लाख किलोमीटर की एकल-यात्रा की है. पेशे से शिक्षक कायनात अब एक ब्लॉगर हैं, पत्रकार और मोटीवेशनल स्पीकर भी हैं.
एक महिला होने के साथ साथ आज वह समाज के लिए एक उदहारण बन गई हैं. उनके प्रयासों को सराहा गया है. हर अखबार में इनके लेख छपते हैं और यही नहीं उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री ने उन्हें पर्यटन मित्र का पुरस्कार भी दिया है. भारत को अपने नज़रिए से देखने का इनका सफ़र आज भी जारी है. देश का शायद ही कोई कोना बचा हो जहां ये गयी नहीं हैं.

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कायनात के लिए ये सब आसान नहीं था. वह भी एक आरामदायक नौकरी कर सकती थी. लेकिन उन्होंने अपने दिल की सुनी. नतीजा आज सबके सामने है. आज कायनात एक जाना पहचाना नाम बन चुकी हैं.
वैसे ट्रैवल करने पर सबसे पहले सवाल आता है कि इसमें पैसे बहुत खर्च होंगे. लेकिन जितने भी ट्रैवलर हुए हैं उनमें शायद ही कोई अमीर रहा हो, चाहे वो इब्ने बतूता हो या फिर राहुल सांस्कृत्यायन. फिर किस चीज़ की ज़रुरत होती है एक यायावर बनने के लिए. सुनिए, कायनात सेः