भारत के लखनऊ में अरबी और यूरोपीय वास्तुकला का मिश्रण दर्शाता बड़ा इमामबाड़ा 18वीं सदी की एक रचना है। और इसे भारत के सबसे रहस्यमय ऐतिहासिक स्थानों में से एक माना जाता है।
यह 18वीं शताब्दी में अवध के चौथे नवाब, नवाब आसफ-उद-दौला द्वारा बनवाया गया था। बड़ा इमामबाड़ा बनवाने का उद्देश्य भयंकर अकाल के उस कठिन समय में लोगों को रोज़गार देने के लिए था। इसके निर्माण से इसमें काम करने वालों के लिये जीवन यापन की व्यवस्था हुई थी।
नवाब के नाम पर इसको आसफ़ी इमामबाड़ा भी कहा जाता है।
इस स्मारक को वास्तव में अद्वितीय बनाता है इसका संरचनात्मक डिज़ाइन। इस स्मारक का केंद्रीय मेहराबदार हॉल लगभग 50 मीटर लंबा और लगभग 3 मंजिल ऊंचा है, लेकिन इसे सहारा देने के लिए कोई खंभा या बीम नहीं है।
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कई वास्तुकारों और इंजीनियरों ने इसकी निर्माण तकनीकों का अध्ययन करने के लिए इमामबाड़ा का दौरा किया है और इसके रहस्यों को जानने का प्रयास किया है, लेकिन आज तक इसी तरह की संरचना का निर्माण संभव नहीं हुआ है।
अनूठी इंटरलॉकिंग ईंट संरचना के अलावा इमामबाड़ा ‘भूलभुलैया’ के लिए भी प्रसिद्ध है।

The labyrinth, Bara Imambara, Lucknow, India. Credit: Christophe Boisvieux/Getty Images
यही पर आप उस कहावत को चरितार्थ होते समझ सकते हैं कि "दीवारों के भी कान होते हैं।” क्योंकि जब आप सुरंगों की दीवार पर अपने कानों को ज़ोर से दबाते हैं, तो दूर से किसी को दीवार में बोलते हुए सुन सकते हैं।
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इमामबाड़ा में एक शाही बावड़ी भी है जिसके लिये कहा जाता है कि यह गोमती नदी से जुड़ी हुई थी और इसमें हमेशा पानी उपलब्ध रहता था।
इसकी एक और खासियत यह भी है कि यहाँ से आप इमामबाड़ा के लॉन में मौजूद पर्यटकों को भी देख सकते हैं।
और वहाँ के एक गाइड के शब्दों में, आज के दौर में अन्दर से दूर बाहर की स्थिति का जायजा ले सकने की क्षमता को "नवाबों की सीसीटीवी तकनीक" के समान कहा जा सकता है।
डिसक्लेमर- इस पॉडकास्ट में प्रस्तुत जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध विभिन्न प्रकाशित लेखों से इकट्ठी की गयी है।
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