पुण्यतिथी: बेमिसाल नूतन

Indian actress Nutan

Indian actress Nutan Source: Wikimedia Commons

नूतन ने भारतीय सिनेमा में ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के दौर से अपने करियर की शुरुवात की थी। उन्होंने चार दशकों तक अपनी हर फिल्म में बेमिसाल अभिनय से एक अमिट छाप छोड़ी और अपने चाहने वालों के दिलों में हमेशा के लिए घर कर लिया।


नूतन ने फिल्मी पर्दे पर भारतीय नारी के कभी विद्रोही चरित्र दर्शाया तो कभी मासूम सिमटी हुयी भावना से भरा किरदार तो कभी हल्के फुलके अंदाज़ से दर्शकों का दिल जीता।  दुबली पतली लम्बी और श्यामल रंग में रचा अनोखा सौन्दर्य लिये नूतन के लिये कहा जाता है कि यूँ वह देखने में बहुत ही साधाहरण और ग्लेमररहित दिखती लेकिन केमरे के सामने आते ही जैसे सब कुछ बदल जाता था । उनके तीखे नैन नक्श पर्दे पर एक अलग ही निशान छोड़ते थे।


मुख्य बातें

  • सिर्फ १६ साल की उम्र में मिस इंडिया का खिताब जीता
  • फिल्मों में शुरुवाल की एक बाल कलाकार के रूप में फिल्म 'नल दमयंती'
  • ६ बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता।

 

स्विजरलेंड से स्कूल की पढ़ाई खत्म करके वह भारत आयी और छोटेपन से ही एक्टिंग करनी शुरू कर दी। और वह अभिनेत्री बनने के ख्वाब भी देखने लगी। ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों के दौर की चर्चित जानी मानी अभिनेत्री शोभना समर्थ की बेटी, तनूजा की बहन नूतन 1950 में नूतन ने फिल्‍म 'हमारी बेटी' में काम किया. यह फिल्‍म उनकी मां शोभना द्वारा बनायी गयी थी.

अब आजकल तो  मिस इंडिया बनते ही  सुनहरे पर्दे पर आने का दरवाजा आसानी से खुल जाता है पर 1952 में यह एवार्ड जीतने के बाद, नूतन के लिये फिल्मों में आना आसान नहीं रहा था। चाहे घर में फिल्मी माहौल था , वह अपनी मां के साथ शूटिंग देखने भी जाया करती थी और उनका शौक भी था  फिल्मों की ओर  लेकिन उन्हें अपनी पहचान बनाने के लिये कड़ा संघर्ष तो करना ही पड़ा। और फिर 1955  फिल्म 'सीमा' में अपने सशक्त अभिनय से एक अनाथ लड़की गौरी का किरदार निभाकर सबका ध्यान अपनी ओर खिंचा और दर्शकों का मन मोह लिया। इस फिल्म के लिये उन्हें सर्वश्रेष्ठ फिल्म अभिनेत्री का पुरस्कार मिला।  

उनकी फिल्म सुजाता १९६० में कांस फेस्टिवल में जब दिखायी गयी तो सभी का ध्यान इस प्रतिभाशाली नायिका के तरफ गया। नूतन को एक नयी पहचान मिली। इसी के साथ उन्होंने जीता फिल्म फेयर फीमेल बेस्ट एक्टर का एवार्ड भी। इस फिल्म को अपनी प्रोग्रेसिव कहानी के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था। इसके बाद तो उनकी अदाकारी के सभी कायल हो गये थे।  

बन्दनी, छलिया, मिलन, सरस्वतीचन्द्र, मैं तुलसी तेरे आँगन में, सौदागर,  पेइंग गेस्ट, तेरे घर के सामने , अनाड़ी, मंज़िल, देवी आदि फिल्मों  में अपने बेमिसाल अभिनय से साथी कलाकारों के लिये,  अभिनय के मापदंड को ऊँची चोटी पर पहुँचा दिया था। सत्तर के दशक तक यूँ समय बदल गया था लेकिन  फिल्म ‘मैं तुलसी तेरे आँगन में’ एक बार फिर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर एवार्ड जीतकर अपनी अभिनय प्रतिभा का परिचय दिया।

नूतन ने अपने करियर के दैरान  सबसे अधिक बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। नूतन को फिल्मों में उनके योगदान के लिए 1974 में भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया और  2011 में उनके नाम पर डाक टिकट भी जारी किया गया ।  21 फरवरी 1991 को कैंसर की वजह से नूतन ने दुनिया को अलविदा कह दिया। अपने हर किरदार को सशक्त अभिनय से निभा कर साथी कलाकारों और आने वाली पीढ़ी के लिये वह एक मिसाल बनी रहीं।

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